₹2000 करोड़ रिश्वत कांड: अदाणी समूह की पोल खुली
₹2000 करोड़ रिश्वत कांड: अदाणी समूह की पोल खुली
20 नवंबर, 2024। गौतम अदाणी, भारत के सबसे बड़े उद्योगपतियों में से एक, सफलता की नई ऊंचाई पर थे। उनकी कंपनी ने बॉन्ड बेचकर $600 मिलियन जुटाए थे। दिनभर की अच्छी खबरों के बाद, उन्होंने अपनी पत्नी के साथ ताश का खेल खेलते हुए शाम बिताई।
लेकिन रात 3 बजे, उनकी दुनिया उलट-पलट हो गई। एक खबर ने उन्हें झकझोर दिया: अमेरिका में गौतम अदाणी के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी किया गया।
आरोप गंभीर थे: ₹2000 करोड़ के घोटाले और भ्रष्टाचार के। यह केवल एक आरोप नहीं था—यह एक चार्जशीट थी। और यह मामला सिर्फ एक रिश्वत या डील तक सीमित नहीं था; यह जमीन घोटाले, टैक्स चोरी, और हिंडनबर्ग रिपोर्ट से जुड़े कई विवादों का नतीजा था।
अदाणी समूह के खिलाफ पुराने आरोपों की लंबी सूची
गौतम अदाणी की सफलता के पीछे कई विवादों की छाया रही है। यह शुरुआत हुई गुजरात में ज़मीन घोटालों से, जब नरेंद्र मोदी मुख्यमंत्री थे। रिपोर्ट्स के अनुसार, जहां टाटा जैसी कंपनियों ने औद्योगिक ज़मीन के लिए ₹1,000 प्रति वर्ग मीटर का भुगतान किया, वहीं अदाणी को यह ज़मीन केवल ₹32 प्रति वर्ग मीटर की कीमत पर दी गई।
2015 में, एक CAG रिपोर्ट ने उजागर किया कि कैसे गलत तरीके से जंगल की ज़मीन को क्लासीफाई करके अदाणी की कंपनियों को ₹58 करोड़ का फायदा हुआ।
इसके अलावा, टैक्स चोरी, कोयला घोटाला, और श्रीलंका के बंदरगाह प्रोजेक्ट जैसे विवाद भी समय-समय पर सामने आए।
2023 में, हिंडनबर्ग रिपोर्ट ने अदाणी समूह को "इतिहास का सबसे बड़ा कॉरपोरेट धोखाधड़ी" कहा। रिपोर्ट ने आरोप लगाया कि अदाणी के भाई विनोद अदाणी ने ऑफशोर कंपनियों का उपयोग करके शेयर बाजार में हेरफेर किया और पैसा गबन किया।
₹2000 करोड़ रिश्वत कांड: अमेरिका की जांच में क्या सामने आया?
2020 में अदाणी ग्रीन एनर्जी ने भारत का सबसे बड़ा सोलर एनर्जी डेवेलपमेंट कॉन्ट्रैक्ट जीता। यह परियोजना नवीकरणीय ऊर्जा में क्रांति लाने वाली थी, लेकिन इसमें एक बड़ी समस्या थी: राज्य सरकारें ऊंची कीमतों पर बिजली खरीदने के लिए तैयार नहीं थीं।
अमेरिकी अभियोजकों के अनुसार, अदाणी समूह ने इस समस्या का हल रिश्वत देकर निकाला।
मुख्य खुलासे:
- “रिश्वत नोट्स”: सागर अदाणी द्वारा रखे गए नोट्स में यह दर्ज था कि किसे कितनी रिश्वत दी गई।
- व्हाट्सएप चैट्स: कंपनी के अधिकारियों के बीच बातचीत में "प्रोत्साहन को दोगुना" करने की चर्चा हुई।
- विशिष्ट डील्स: आंध्र प्रदेश के अधिकारियों को ₹17.5 अरब की रिश्वत देने का आरोप। तमिलनाडु, ओडिशा और छत्तीसगढ़ भी इसमें शामिल थे।
सेबी, सुप्रीम कोर्ट, और नियामक विफलताएं
जहां अमेरिका ने कार्रवाई की, वहीं भारत की प्रतिक्रिया काफी धीमी रही। सेबी (SEBI), जो कॉरपोरेट गवर्नेंस की निगरानी करता है, को निष्क्रियता के लिए आलोचना झेलनी पड़ी।
मार्च 2023 में, सुप्रीम कोर्ट ने सेबी को हिंडनबर्ग रिपोर्ट में लगाए गए आरोपों की जांच करने का निर्देश दिया। लेकिन सेबी ने बार-बार समय मांगा, यह कहते हुए कि विदेशी निवेशकों का पता लगाना जटिल है।
इसके साथ ही, सेबी चेयरपर्सन माधबी बुच पर हितों के टकराव का आरोप लगा। हिंडनबर्ग ने दावा किया कि बुच ने उन ऑफशोर फंड्स में निवेश किया था, जिनका संबंध अदाणी समूह से था।
भारतीय राजनीति की भूमिका
राहुल गांधी के नेतृत्व में विपक्ष ने अदाणी की गिरफ्तारी की मांग की और संसदीय जांच समिति (JPC) गठित करने का प्रस्ताव रखा। गांधी ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री मोदी और अदाणी के करीबी संबंधों के कारण सरकार कोई कार्रवाई नहीं कर रही।
बीजेपी ने इन आरोपों को खारिज करते हुए कहा कि विपक्षी राज्यों पर भी रिश्वत लेने का आरोप है।
इस बीच, दिल्ली के पूर्व मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने खुलासा किया कि उन पर अदाणी को दिल्ली की बिजली कंपनियां सौंपने का दबाव था।
अदाणी और ट्रंप का कनेक्शन
इस घोटाले का वैश्विक पहलू अदाणी और अमेरिका के पूर्व राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के रिश्तों में भी जुड़ा है। अदाणी ने अमेरिका में $10 अरब का निवेश करने का वादा किया था। ट्रंप के परिवार के सदस्य अदाणी के अहमदाबाद स्थित घर भी गए थे।
ट्रंप के दोबारा सत्ता में आने की संभावना के कारण यह केस और भी पेचीदा हो सकता है।
वैश्विक प्रतिक्रिया
इस मामले का प्रभाव केवल भारत तक सीमित नहीं है।
- केन्या: अदाणी की पावर लाइन और हवाई अड्डे की डील रद्द कर दी गई।
- श्रीलंका: अदाणी के बिजली खरीद समझौतों की समीक्षा शुरू की।
- बांग्लादेश: अदाणी की परियोजनाओं की जांच के लिए एक कानूनी फर्म को नियुक्त किया।
- नॉर्वे: अदाणी पोर्ट्स को मानवाधिकारों के उल्लंघन के कारण ब्लैकलिस्ट कर दिया।
साधारण नागरिकों पर प्रभाव
यह घोटाला केवल अदाणी के बारे में नहीं है; यह भारत के आम नागरिकों को भी प्रभावित करता है।
ऊंची बिजली कीमतों के कारण उपभोक्ताओं को अधिक भुगतान करना पड़ा। वहीं, जमीन घोटालों ने स्थानीय समुदायों को उनके संसाधनों से वंचित कर दिया।
पारदर्शिता की जरूरत
अदाणी पर अंतरराष्ट्रीय जांच जारी है, लेकिन भारत को भी अपनी जिम्मेदारी निभानी होगी। सुप्रीम कोर्ट, सेबी, और अन्य संस्थानों को निष्पक्ष जांच करनी चाहिए।
संयुक्त संसदीय समिति (JPC) जैसी स्वतंत्र जांच से ही सच सामने आएगा।
निष्कर्ष
जमीन घोटालों से लेकर रिश्वतखोरी और नियामक विफलताओं तक, अदाणी समूह के विवाद प्रणालीगत खामियों को उजागर करते हैं।
क्या भारत की संस्थाएं सही कार्रवाई करेंगी, या फिर ताकतवर लोग एक बार फिर बच निकलेंगे? अपने विचार नीचे साझा करें।
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