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The Story of Syria’s Civil War

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The Story of Syria’s Civil War: From Dictatorship to Chaos On a quiet morning in Syria’s Sednaya prison, a 63-year-old writer, Bashar Barhoom, awaited his fate. A supporter of Syria’s dictator, Bashar Al-Assad, Barhoum had been imprisoned seven months earlier after criticizing Iran for exploiting the Syrian people. On that fateful day, Barhoom was minutes away from execution. But when the door opened, it wasn’t the Syrian security forces—it was the rebels. The opposition had overthrown Assad’s regime, and Barhoum, along with others destined for death, walked free. This single act of liberation marked the culmination of decades of oppression, rebellion, and conflict that transformed Syria into a battleground for ideologies, superpowers, and survival. The Roots of the Syrian Crisis Syria’s struggles began long before the civil war. Following independence from French rule in 1946, the country faced instability due to its diverse religious and ethnic composition. Sunni Muslims formed ...

''जब तानसेन की तानाशाही को एक बच्चे ने खत्म किया''

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प्रस्तुत कहानी सम्राट अकबर के सुप्रसिद्ध रागी तानसेन द्वारा निर्धारित किए गए राग-विद्या के नियम पर आधारित है। उसकी बराबरी करने वाला हर व्यक्ति मौत के घाट उतार दिया जाता था। ऐसी स्थिति में एक छोटे से बालक ने अपने पिता को इसी कारणवश बचपन में खो दिया था। प्रतिशोध की अग्नि में जलता हुआ बैजू बावरा होकर नवयौवन के उस पड़ाव तक आ पहुँचा, जब उसका सामना तानसेन से प्रतियोगिता के रूप में हुआ। बैजू बावरा की सम्मोहिनी आवाज़ ने सबके हृदय उद्वेलित कर दिए और तानसेन को अपने चरणों में गिरने को विवश कर दिया। प्रभात का समय था, आसमान से बरसती हुई जीवन की किरणें संसार में नवीन जीवन का संचार कर रही थीं। बारह घंटों के लगातार संग्राम के बाद प्रकाश ने अँधेरे पर विजय प्राप्त की थी। इस खुशी में फूल झूम रहे थे और पक्षी मीठे गीत गा रहे थे। पेड़ों की शाखाएँ खेलती थीं और पत्ते तालियाँ बजाते थे। चारों तरफ़ प्रकाश नाचता था। चारों तरफ़ खुशियाँ झूमती थीं। चारों तरफ़ गीत गूँजते थे। इतने में साधुओं की एक मंडली शहर के अंदर दाखिल हुई। ये लोग जो मस्तमौला, ईश्वरभक्त और हरि भजन के मतवाले थे, संसार से बंधन तोड़ चुके थे, और अपने मन ...

भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय // Ancient University of India

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  भारत के प्राचीन विश्वविद्यालय का इतिहास नालंदा विश्वविद्यालय बिहार के नालंदा जिले में स्थित नालंदा विश्वविद्यालय विश्व का सबसे प्राचीन विश्वविद्यालय हैं। इसकी स्थापना 450-470 ईसवी में गुप्त वंश के शासक कुमारगुप्त ने की थी। 12 वीं शताब्दी तक यहां सफलतापूर्वक शिक्षण-अध्ययन कार्य चलता रहा, तुर्क आक्रमणकारियों द्वारा नष्ट-भ्रष्ट किए जाने से पूर्व तक यहां 10 हजार से अधिक विद्यार्थी और दो हजार से अधिक आचार्य थे। यह विश्वविद्यालय स्थापत्यकला का बेजोड़ नमूना था। विशाल दीवार से गिरे परिसर में मठ, स्तूप, मंदिरों के साथ-साथ केंद्रीय विद्यालय में 7 बड़े कक्ष और 300 कमरे थे, जिनमें पढ़ाई होती थी। रत्नसागर, रत्नोदधि व सप्तरंजक नामक तीन बड़े पुस्तकालय भी थे। हां देश-विदेश से सभी धर्म संप्रदायों के लोग अध्ययन करने आते थे। यहां के विद्वान भी बौद्ध धर्म के प्रचार हेतु बाहर जाते थे। सातवीं शताब्दी में यहां ह्वेनसांग अध्ययन करने आया था। यहां वेद व्याकरण दर्शन, शल्यविद्या, ज्योतिष, योग शास्त्र, तर्क विद्या, चिकित्साविज्ञान, धातुकर्म, खगोलशास्त्र की पढ़ाई होती थी। यह विश्वविद्यालय कोई साधारण शिक्षा ...
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