लम्बे होने के जैविक नियम (कब तक कैसे बढ़ सकती है लम्बाई ?)
सच है की हर इंसान लंबा होने की चाह रखता है। यह तमन्ना पुरुषों में अधिक प्रबल होती है, पर स्त्रियों में भी प्रायः बचपन से ही लंबे होने की चाहत होती है। दुनिया के हर देश, समाज और समुदाय के स्त्री-पुरुष न सिर्फ स्वयं लंबे होने की इच्छा रखते है, बल्कि उनमें यह भी चाह होती है कि उनके बच्चे लंबे कद के हों। लंबाई के प्रति यह लगाव संभवतः हमारी उस आदिम सोच का एक हिस्सा है जिसमें लंबा-चौड़ा और तगड़ा शरीर हमें अन्य देहधारियों की तुलना में अधिक बलशाली बनाने में उपयोगी था। मानव के उदभव और विकास के पश्चात शुरुआती पीढ़ियों में इसी सोच के चलते स्त्रियाँ जीवनसाथी के रूप में लंबे पुरुषों को चुनना अधिक पसंद करती थीं। मानव उदभव और विकास पर शोध करने वाले मनो-विश्लेषकों का यह मत है कि उस काल की स्त्रियों में लंबे पुरुषों की पसंद इस सोच से रही होगी कि लंबे तगड़े शरीर वाला पुरुष उन्हें और उनकी संतान को बेहतर सुरक्षा दे सकेगा।
कमोबेश आज सहस्रों वर्ष बाद भी हमारी लंबाई संबंधी पसंद उसी आद्य सोच पर टिकी है। लंबा होना आकर्षक व्यक्तित्व का एक अनिवार्य अंग माना जाता है। यदि उदाहरण के लिए बीते सालों में मिस यूनिवर्स और मिस वर्ल्ड प्रतियोगिता जीतने वाली सुंदरियों की ही बात लें तो कम लंबाई की स्त्री के विश्व सुंदरी बनने की बात तो दूर, कोई भी उस मंच पर अपने देश का प्रतिनिधित्व करने के लिए भी नहीं चुनी गई है। इससे पता चलता है कि विश्व समुदाय की वर्तमान मानसिकता लंबा होने के पक्ष में है और यह दैहिक गुण सुंदर और आकर्षक कहलाने का अभिन्न अंग है।
इसी मानसिकता ने विश्व भर में आज लंबाई बढ़ाने वाले उत्पादों का एक बड़ा बाजार खड़ा कर दिया है। कोरे धन लाभ के लिए कुछ कंपनियाँ अवैज्ञानिक दावे पेश कर लंबाई बढ़ाने के झूठे सपने दिखा लोगों की जेब ढीली करने में लगी हैं। आज ऐसी कंपनियों के विज्ञापन और दावे सड़कों, गली- मौहल्लों की दीवारों, बिजली के खम्भों, टैक्सियों और तिपहिया वाहनों पर अखबारों-पत्रिकाओं और मायावी ई-स्पेस की दुनिया में अटे पड़े हैं। जिनके माध्यम से वे झूठे आश्वासन दे अपने व्यर्थ उत्पाद बेचकर मल्टी- बिलियन डॉलर के कारोबार में जुटी हैं। उन्हें सृष्टि का रचा यह साधारण जैविक सत्य भी नहीं मालूम कि लंबाई बढ़ने की एक उम्र होती है। जब कोई किशोर उस उम्र के पार पहुँच जाता है, तो हड्डियाँ तोड़े बगैर किसी भी तरीके से उसकी लंबाई बढ़ाई नहीं जा सकती।
फिर भी सुंदर और आकर्षक दिखने की चाह में लड़के-लड़कियाँ, युवक-युवतियाँ और यहाँ तक कि वयस्क भी इन झाँसेबाजों के चक्कर में आ जाते हैं। उन्हें सच्चाई तब पता चलती है जब जेब खाली हो जाती है और हाथ कुछ नहीं लगता।
समझदारी इसी में है कि पहले यह जानें कि लंबाई कैसे, कब, क्यों और किस उम्र तक बढ़ती है। जब लंबे होने का यह आधारभूत जैविक गणित समझ आ जाए और लंबाई बढ़ने के लिए उम्र शेष हो तो उन युक्तियों को आजमाएँ जो वैज्ञानिक दृष्टि से पुष्ट हैं।
लंबे होने का जैविक गणित।
सरल जैविक सत्य यह है कि लंबा होना सबके बस की बात नहीं। यह आम अनुभव की बात है कि जिन परिवारों में माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी लंबे होते हैं, उनमें बच्चे भी प्रायः लंबे होते हैं। इसके विपरीत जिनमें माता-पिता, दादा-दादी, नाना-नानी छोटे कद के होते हैं, उनकी अगली पीढ़ी का कद भी प्राय: छोटा ही होता है। यह समूचा जैविक गणित हमें माता-पिता और बुजुर्गों से विरासत में मिलने वाले आनुवंशिक कारक, जिन्हें जीन या गुणसूत्र कहते हैं, पर टिका है।
जब से ह्यूमन जीनोम शोध अनुसंधान ने जोर पकड़ा है, आनुवांशिकी प्रयोगशालाएँ अन्य गुण-अवगुणों के साथ-साथ मनुष्य की कद-काठी से संबंधित जीन्स का गणित समझने की भी पुरजोर कोशिश में जुटी हैं। इस विषय पर अनेक आनुवांशिकीय अध्ययन हुए हैं। हाल ही में प्रकाशित एक शोध रिपोर्ट में लंबाई को केंद्र में रखकर 25 लाख लोगों के जीनोमिक डाटा का विश्लेषण किया गया है। उनमें जीन्स के 700 ऐसे रूप और 400 से अधिक ऐसे जीनोम क्षेत्र मिले हैं, जिनसे उनकी लंबाई सुनियंत्रित हुई थी।
आनुवांशिकी वैज्ञानिकों ने यह महत्वपूर्ण जानकारी भी सामने रखी है कि ये जीन्स लंबाई को किस प्रकार सुनियंत्रित करते हैं। ये मानद कंकाल के विकास और वृद्धि पर किस प्रकार प्रभाव डालते हैं, हड्डियों के बढ़ते हुए छोरों पर किस प्रकार नियंत्रण रखते हैं और कब कैसे हड्डियों की वृद्धि पर ताला लगा देते हैं।
लंबाई के जैविक गणित की पहेली सुलझाने में लगे आयुर्विज्ञान शास्त्रियों का मानना है कि हमारी लंबाई मूलतः उसी समय निर्धारित हो जाती है, जब माँ के डिंब और पिता के शुक्राणु से मिले जीन्स माँ की कोख में हमारे निर्माण का बीज डालते हैं। इंसान की 70-80 प्रतिशत लंबाई इन्हीं जीन्स से निर्धारित होती है। इस पर किसी का वश नहीं चलता। जीन्स ही पीढ़ी दर पीढ़ी लंबाई को नियंत्रित करने के लिए उत्तरदाई होते हैं।
किस उम्र तक लिखा है लंबाई बढ़ने का योग
हमारी लंबाई बढ़ने के लिए शरीर की हडिडयों का बढ़ना जरूरी है, यह वृद्धि एक खास उम्र तक ही होती है। बचपन और किशोरावस्था में हड्डियों के छोर खुले रहते हैं और आंतरिक शारीरिक स्थितियाँ अनुकूल होने पर हड्डियाँ अपनी गति से बढ़ती रहती हैं। पर 16वें 17वें 18वें जन्मदिन तक आते- आते हड्डियों के खुले छोर सील हो जाते हैं। उनके बंद होते ही हड्डियों के बढ़ सकने की क्षमता खत्म हो जाती है। अब लंबाई किसी भी विधि से बढ़ाई नहीं जा सकती। कोई भी हॉरमोन औषधि या टीका किसी भी प्रकार से कोई जादू नहीं दिखा सकता ।
बाल चिकित्सकों ने लड़कों और लड़कियों की उम्र के साथ बढ़ने वाली लंबाई का क्रमागत अध्ययन कर यह जान लिया है कि उनमें लंबाई किस गति से और किस उम्र तक बढ़ती है। बाल चिकित्सकों के संगठन 'इंडियन एसोसिएशन ऑफ पीडिएट्रिक्स' द्वारा प्रकाशित विकास ग्राफ (ग्रोथ चास) के मुताबिक भारतीय लड़के लंबाई में 18 साल की उम्र तक बढ़ते हैं, जबकि लड़कियाँ 15- 16.5 साल की उम्र तक ही अपनी लंबाई हासिल कर लेती हैं।
बीते सौ सालों में बढ़ी है औसत लंबाई
बीते सौ सालों में दुनिया के अधिकतर देशों में पुरुषों और स्त्रियों की औसत लंबाई में वृद्धि दर्ज हुई है। यह वृद्धि बेहतर स्वास्थ्य और बेहतर पोषण से प्रेरित है। जिन देशों के औसत पोषण में अधिक सुधार नहीं हो पाया है, उनमें यह वृद्धि कम हुई है। सन 1914 की तुलना में 2014 में भारतीय पुरुषों की औसत लंबाई 2.9 सेमी बढ़ी है और स्त्रियों की औसत लंबाई में 4.9 सेमी. की वृद्धि हुई है। जबकि पड़ोसी देशों जैसे बांग्लादेश व श्रीलंका में स्त्रियों की औसत लंबाई में 19.3 सेमी. की वृद्धि हुई है। औसत शारीरिक लंबाई की दृष्टि से सन 1914 में भारतीय पुरुष विश्व में 101 वें स्थान पर और भारतीय स्त्रियाँ 163 वें स्थान पर थीं। सन 2014 में यह स्थिति पहले से थोड़ी बिगड़ गई है। अब भारतीय पुरुषों का स्थान 178वाँ और भारतीय स्त्रियों का स्थान 192वाँ हो गया है। आज भारतीय पुरुषों की औसत लंबाई 164.9 सेमी. (5 फुट 5 इंच) तथा भारतीय स्त्रियों की औसत लंबाई 152.6 सेमी. (5 फुट) है। निश्चिततः अभी हमारे देश को जन स्वास्थ्य और पोषण के महत्वपूर्ण क्षेत्रों में एक लंबा सफ़र तय करना है।
लंबाई को प्रभावित करने वाले कारक
मनुष्य की 70-80 प्रतिशत लंबाई जीन्स द्वारा निर्धारित होती है। बाकी 20-30 प्रतिशत के लिए अनेक कारक उत्तरदाई होते हैं। पहला पोषण, जिसमें आहार में प्रोटीन की कुल मात्रा, खनिज खासकर कैल्सियम और सूक्ष्म पोषक तत्व खासकर विटामिन प्रमुख योगदान देते हैं। दूसरे हॉर्मोन, जिनमें मानव वृद्धि हॉर्मोन (ग्रोथ हॉर्मोन), यौन हॉर्मोन एंड्रोजेन व ईस्ट्रोजेन तथा थायरॉइड हॉर्मोन प्रमुख हैं। इनमें मानव वृद्धि हॉर्मोन का सबसे बड़ा योगदान रहता है। किसी व्यक्ति के शरीर में मानव वृद्धि हॉर्मोन किस मात्रा में बनता है, इस प्रक्रिया को भी बहुत से कारक प्रभावित करते हैं। व्यक्ति कितनी शारीरिक कसरत करता है, उसे रात में पूरी नींद मिल पाती है या नहीं; ये दो कारक मानव वृद्धि हॉर्मोन के नैसर्गिक उत्पादन में मुख्य भूमिका निभाते हैं। स्वास्थ्य का भी लंबे होने की क्षमता पर प्रभाव पड़ता है, जो बच्चे बार-बार बीमार पड़ते हैं या जिन्हें कोई दीर्घकालिक रोग हो जाता है, उनकी लंबाई अपेक्षानुसार नहीं बढ़ पाती।
लड़के-लड़की का शरीर किस उम्र में सयाना होना शुरू हुआ, लंबाई बढ़ने का क्रम इस तथ्य से भी अंतरंग रूप से जुड़ा हुआ है। यह बात लड़कियों पर खासकर लागू होता है। इसका संबंध शरीर में यौन हॉर्मोन उत्प्रेरण से है। भारतीय लड़कियाँ वयःसंधिकाल के एक-दो साल पहले से लंबाई अकस्मात् तेजी से बढ़ने लगती है। उनके रजस्वला होने तक लंबे होने की यह गति और तेज हो जाती है और फिर धीमी पड़ती हुई 15-16 वर्ष की उम्र में रुक जाती है। सिर्फ 3 प्रतिशत भारतीय में ही लंबाई उनके 16वें जन्मदिन के बाद थोड़ी और बढ़ती है।
किन-किन चीज़ों से बढ़ सकती है लंबाई
अपने जेनेटिक गुणों के अनुसार पूरी लंबाई पाने के लिए कुछ बातों पर ध्यान देना लाभकारी साबित हो सकता है:
- गर्भकाल में माँ की सजगता : गर्भवती होने से पहले से ही माँ यदि अपने स्वास्थ्य, खानपान और पोषण के प्रति जागरूक हो जाए, तो उसकी कोख से लेने वाला बच्चा हृष्ट- पुष्ट और जेनेटिक संरचना के अनुरूप लंबा होता है। इसके विपरीत माँ का स्वास्थ्य खराब हो, वह कुपोषण की शिकार हो तो बच्चा कमजोर व छोटा रह जाता है। उसका समुचित विकास नहीं हो पाता। माँ का गर्भावस्था में धूम्रपान करना, तम्बाकू खाना, एल्कोहल का सेवन और अन्य नशे करना भी बच्चे के विकास में बाधा उत्पन्न कर सकता है।
- बचपन से ही संपूर्ण आहार : बच्चे के आहार में प्रोटीन, कुल कैलोरी, कैल्सियम और विटामिन की कमी उसकी लंबाई बढ़ने की क्षमता पर नकारात्मक प्रभाव डालते है। बच्चे के समुचित विकास के लिए माता-पिता का संतुलित और पोषक आहार पर ध्यान देना अनिवार्य है।
- बचपन से ही अच्छा स्वास्थ्य : बच्चे के स्वास्थ्य पर शुरू से ही ध्यान देना जरूरी है। अगर बच्चे में जन्मजात कोई दोष हो तो माता-पिता का यह दायित्व है कि उसका प्रारंभ में ही उपचार करा दें। उदाहरण के लिए यदि किसी बच्चे के दिल में छेद है और उसे समय से बंद न किया जाए तो उसके शारीरिक विकास पर आँच आ सकती है। ऑपरेशन करके छेद बंद कर देने पर बच्चा अपनी क्षमता के अनुकूल विकास कर सकता है।
- बच्चे को बार-बार संक्रमण होते रहें, तो इसका भी उसके विकास पर बुरा असर पड़ता है। बच्चा जितना स्वस्थ रहेगा, उतना ही उसका विकास अच्छा होगा। बच्चे के वजन पर भी शुरू से ही ध्यान देना जरूरी है। न तो उसका कमजोर होना अच्छा है, न ही स्थूल होना मोटे बच्चे बचपन में अपने हमउम्र बच्चों से चाहे अधिक लंबे हों, पर बाद में उन्हें इसका खामियाजा भुगतना पड़ता है। उनकी हड्डियाँ उम्र से पहले ही बढ़नी बंद हो जाती हैं।
- व्यायाम : लंबे होने की चाहत रखने वाले किशोर-किशोरियों को हर कोई जिम जाने क्रासबार पर लटकने, योग और व्यायाम करने की सलाह देता है। यह एक व्यावहारिक सलाह है जिसके अनेक लाभ हैं, लंबाई बढ़ने में भी सकारात्मक लाभ सम्मिलित है। यह लाभ मानव वृद्धि हॉर्मोन के उत्पादन में आई आंशिक बढ़ोतरी से जुड़ा है।
- मानव वृद्धि हॉर्मोन : बहुत-से माता-पिता बच्चे को लंबा देखने की चाह में मानव वृद्धि हॉर्मोन के टीके लगवाने के इच्छुक रहते हैं। यह टीके उसी स्थिति में लगवाना उचित है। जब बच्चे में इस हॉर्मोन की कमी की पुष्टि हो जाए। वरना इन टीकों से लाभ कम, तरह-तरह की हानियाँ अवश्य हो सकती हैं।
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